डर गया हूँ प्यार से कुछ इस तरह मैं,
किसी की निगाहें तलाशता ही नहीं हूँ मैं.
खुदी से जी लूँगा इसका ऐतबार है अब,
किसी रब्त को तवज्जोह देता ही नहीं हूँ मैं.
इधर उधर से निकल आता है तेरी यादों का लश्कर,
डरा डरा सा यूँ ही गुज़र जाता हूँ मैं उससे.
तबाह होते हैं कुछ पल और कई आरजुएं बेज़ार.
इसी तरह दफ़्न होता जाता हूँ
कतरा कतरा मैं अपनी ही कब्र में.
Friday, July 06, 2007
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