जहन में कोई कशमकश सी कहीं हैं,
समय और सब्र की फौजें रूबरू खड़ी हैं.
क्या लिखा है मुकम्मल जहाँ नसीब में,
इबादत मेरी एक बार फिर से दांव पे लगी है.
समय और सब्र की फौजें रूबरू खड़ी हैं.
क्या लिखा है मुकम्मल जहाँ नसीब में,
इबादत मेरी एक बार फिर से दांव पे लगी है.