Monday, October 20, 2008

क्यों फ़िर दिल लगाने को उकसाती हो -जैसे,
हशं क्या है, ना जानती हो.

ख्वाब देखने को इसरार करती हो कैसे,
जब शब् ओ रोज़, नींद ना आती हो.

जानता हूँ, भर जायेंगे ये  ज़ख्म वक़्त में.
इल्म है, गुज़र जाएगी एक उम्र किस तरह भी,
पर बताओ ज़ख्मो भरे दिल को,
इस पल के लिए ही कैसे तुम सहलाती हो?

क्या होगा करीब कोई कल में,
क्या होगा दिल खुश उस पल में,
क्या कहती हो, ये सच होगा,
या फ़कत दिल को तुम बहलाती हो?

Tuesday, October 14, 2008

इस दर्द की कोई दवा नहीं,
गमजदा हूँ और कोई दुआ नहीं.

जम गया है बर्फ की तरह,
ख़याल तेरा जिगर के  इर्दगिर्द.
सुन्न सा है दिल,
मुहब्बत की कोई आरजू नहीं.

अब खुद से ही हूँ, अतराफ कोई नहीं,
जी रहा हूँ, शामिल कोई और वजह नहीं.

Wednesday, October 08, 2008

दर्द इतना बढ़ गया की,
शायरी अब लिखी नहीं जाती 
अंगारे अभी गरम हैं और 
भावनाओं को आंधी दी नहीं जाती.

डरते हैं, लिखे क्या,
की कब्रें ऐसे ही कुरेदी नहीं जाती 
दफ़्न हैं कई गम ऐसे और
कई आरजुएं बेज़ार
जिनकी सांसें अब तलक नहीं जाती.