Monday, January 25, 2010

कभी सपना था वो हकीकत बन रहा है,
बे-सब्र बहती धारों से साहिल बन रहा है |

किसी का ना होना अब आरज़ू बन रहा है,
सुबह से शाम भर जीना, रोज़ाना बन रहा है|

माना की अभी मंज़िल नहीं मिली, कोई गुलशन नहीं बना,
कम से कम इस बार वीराने में सऱाब तो बन रहा है|