Monday, December 19, 2011

सोचता हूँ अगर
ये इश्क सा न हुआ होता,
अपने दरमियाँ
कुछ तो बचा होता.

हर एक बात पे,
न यूँ मैं खफा होता.
हर प्यार के एहसास पे.
न दर्द ही ज़रा होता.

धीरे धीरे न यूँ,
तू मुझसे जुदा होता.
न ये सोचता हर पल
की कभी न तुझसे मिला होता.


Tuesday, November 15, 2011

जहन में कोई कशमकश सी कहीं हैं,
समय और सब्र की फौजें रूबरू खड़ी हैं.
क्या लिखा है मुकम्मल जहाँ नसीब में,
इबादत मेरी एक बार फिर से दांव पे लगी है.

Friday, September 09, 2011

खाली खोखले रिश्तों की यह ढोलक,
शोर करती है, बजती है जब तक

रटती है तनहा आदमी के जिस्त की किताब 

बार बार मरम्मत की मारी,
कराहती हुई आवाज़,

सन्नाटे के शुन्य से बेहतर ही है शायद यह फिजूल-ए-साज़.