खाली खोखले रिश्तों की यह ढोलक,
शोर करती है, बजती है जब तक
रटती है तनहा आदमी के जिस्त की किताब
रटती है तनहा आदमी के जिस्त की किताब
बार बार मरम्मत की मारी,
कराहती हुई आवाज़,
कराहती हुई आवाज़,
सन्नाटे के शुन्य से बेहतर ही है शायद यह फिजूल-ए-साज़.
© 2005-2021 (Harshit Agrawal)