भावनाओं में इतना कस गया,
की दम ही घुटने लगा.
मन के तालाब में ऐसा भंवर चला,
इकलौता बाँध भी टूटता रहा.
इछाओं का बोझ बढता ही गया,
सपनो का महल वहीँ ढहने लगा.
रिश्ते का धागा इस तरह खींचता गया.
एक वार में ही वह चटक गया.
और किसी कमजोरी की गुंजाईश ना रही,
जो रब्त-ओ- बुत- ए-पाक ही बहक गया.
Monday, June 23, 2008
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