Friday, December 04, 2009

लो फ़िर एक नया मुकाम आ गया
कैसे गुज़र गया कल, और आज आ गया
इंसान तो मैं वो ही हूँ,
परत दर परत नया अंदाज़ आ गया

एक पल ही जैसे गुजरा है, 
मैं कहाँ से कहाँ आ गया.
ना जाने कैसी यह तलाश है,
शहर से चला था गाँव आ गया



Friday, September 25, 2009

हर कदम का अब कद कम है,
ज़बान में अब मद कम है
गुज़र जो गया है वक़्त इतना,
ज़हन में अब गम कम है.

Sunday, March 22, 2009

कब जुड़ेंगे ये दिल के टुकड़े,
कब मिटेंगे ये जख्मों के धब्बे,
कबसे चल रहा हूँ यूँ गिड़ते पड़ते,
कब भरेंगे ये राहों के गड्ढे.