क्यों फ़िर दिल लगाने को उकसाती हो -जैसे,
हशं क्या है, ना जानती हो.
ख्वाब देखने को इसरार करती हो कैसे,
जब शब् ओ रोज़, नींद ना आती हो.
जानता हूँ, भर जायेंगे ये ज़ख्म वक़्त में.
इल्म है, गुज़र जाएगी एक उम्र किस तरह भी,
पर बताओ ज़ख्मो भरे दिल को,
इस पल के लिए ही कैसे तुम सहलाती हो?
क्या होगा करीब कोई कल में,
क्या होगा दिल खुश उस पल में,
क्या कहती हो, ये सच होगा,
या फ़कत दिल को तुम बहलाती हो?
Monday, October 20, 2008
Tuesday, October 14, 2008
Wednesday, October 08, 2008
Monday, June 23, 2008
Tuesday, May 27, 2008
Saturday, May 24, 2008
जिस मोड़ पे आ गए हैं,
कई सुर्ख राहें नज़र आती हैं
मंजिलें दूर तलक जाती है,
और कदम थमते नज़र आते हैं
पीछे जिन राहों में जो सुकून छोड़ आये हैं,
मुड़ मुड़ कर उसे देखने रुक जाते हैं
बेमंन से कल की तरफ देखते हैं,
भारी क़दमों से फिर चल पड़ते हैं
अपनों की जो पल पल परिभाषा बदल रहे हैं,
इसी बीच कुछ अपनों को पराया कर चले जाते हैं
तड़पते हैं, छटपटाते हैं,
कुछ बंधनों को थामने के लिए,
कुछ की बलि चडाते हैं.
ना जीते हैं ना मरते हैं
दिशाहीन से किसी थोर बड़े चले जाते हैं.
-
जिस मोड़ पे आ गए हैं,
कई सुर्ख राहें नज़र आती हैं.
कई सुर्ख राहें नज़र आती हैं
मंजिलें दूर तलक जाती है,
और कदम थमते नज़र आते हैं
पीछे जिन राहों में जो सुकून छोड़ आये हैं,
मुड़ मुड़ कर उसे देखने रुक जाते हैं
बेमंन से कल की तरफ देखते हैं,
भारी क़दमों से फिर चल पड़ते हैं
अपनों की जो पल पल परिभाषा बदल रहे हैं,
इसी बीच कुछ अपनों को पराया कर चले जाते हैं
तड़पते हैं, छटपटाते हैं,
कुछ बंधनों को थामने के लिए,
कुछ की बलि चडाते हैं.
ना जीते हैं ना मरते हैं
दिशाहीन से किसी थोर बड़े चले जाते हैं.
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जिस मोड़ पे आ गए हैं,
कई सुर्ख राहें नज़र आती हैं.
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