Wednesday, October 08, 2008

दर्द इतना बढ़ गया की,
शायरी अब लिखी नहीं जाती 
अंगारे अभी गरम हैं और 
भावनाओं को आंधी दी नहीं जाती.

डरते हैं, लिखे क्या,
की कब्रें ऐसे ही कुरेदी नहीं जाती 
दफ़्न हैं कई गम ऐसे और
कई आरजुएं बेज़ार
जिनकी सांसें अब तलक नहीं जाती.

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