कभी सपना था वो हकीकत बन रहा है,
बे-सब्र बहती धारों से साहिल बन रहा है |
किसी का ना होना अब आरज़ू बन रहा है,
सुबह से शाम भर जीना, रोज़ाना बन रहा है|
माना की अभी मंज़िल नहीं मिली, कोई गुलशन नहीं बना,
कम से कम इस बार वीराने में सऱाब तो बन रहा है|
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