Tuesday, February 02, 2010

यह पल

जी का जंजाल है यह पल.

अभी अभी तो बिताया था,
देखो फिर आ गया यह पल.

रात को देर तलक बैठा था,
सुबह पहले पहर चला आया यह पल.

क्यों है तू? क्या है तू?
बेमतलब के इन सवालों का वकील है यह पल.

जी लेता इसको, क्या फरक पड़ता है,
था या नहीं था यह पल.

मगर कुछ और नहीं,
किसी के ना होने का एहसास है यह पल.

मेरी तन्हाई का खुलासा है यह पल,

जी का जंजाल है यह पल.

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