खाली खाली सा है, दिल के हर कोने में.
आँखें भारी भारी हैं, तकलीफ है फ़िर भी सोने में.
बेमतलब करता रहा कुछ भी, दिनभर
क्या फरक है मुझमे और खिलोने में.
गम बार बार मिलते रहे,
मज़ा आने लगा है मुझे अब रोने में.
कोई आरज़ू नहीं, कोई जुस्तजू नहीं.
कुछ अलग नहीं होने या ना होने में.
Monday, September 10, 2007
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