अपने ही देश को कभी अजनबी नज़रों से देखता हूँ मैं.
अच्छाइयों को तो महसूस करता ही हूँ मैं
कमियों को अक्सर सोचता हूँ मैं.
भीड़ के धक्कों में अपनेपन का ज़िक्र खोजता हूँ मैं.
ज़द्दोजाहत-ए-ज़िन्दगी में कल का अक्स है कहीं.
वाहनों की रफ़्तार से सपनो की भूमिका को मापता हूँ मैं.
कभी शर्म कभी गर्व महसूस करता हूँ मैं.
अपने देश को कभी अजनबी नज़रों से देखता हूँ मैं
अच्छाइयों को तो महसूस करता ही हूँ मैं
कमियों को अक्सर सोचता हूँ मैं.
चिलचिलाती धुप में संव्लाते चेहरे देखते हूँ मैं
किसी को किसी की फ़िक्र कहाँ,भीड़ के धक्कों में अपनेपन का ज़िक्र खोजता हूँ मैं.
ज़द्दोजाहत-ए-ज़िन्दगी में कल का अक्स है कहीं.
वाहनों की रफ़्तार से सपनो की भूमिका को मापता हूँ मैं.
कभी शर्म कभी गर्व महसूस करता हूँ मैं.
अपने देश को कभी अजनबी नज़रों से देखता हूँ मैं