लो फ़िर एक नया मुकाम आ गया
कैसे गुज़र गया कल, और आज आ गया 
इंसान तो मैं वो ही हूँ,
परत दर परत नया अंदाज़ आ गया 
एक पल ही जैसे गुजरा है,  
मैं कहाँ से कहाँ आ गया.
ना जाने कैसी यह तलाश है, 
शहर से चला था गाँव आ गया
Friday, December 04, 2009
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