Sunday, August 01, 2010

भावनाएं जोड़ एहसास उभर आया है, और
एहसासों ने तराशा है तेरा तसव्वुर  रूबरू .
अब के कशमकश- ए- 'सुफन' ये है के
तलब-- आशिकी तू है या तेरे तसव्वुर की मुझे आरज़ू.

1 comment:

Arun Agrawal said...

Dost,
Tumhare shabd toh hamesha ke tarah kaabile taarif hain..Subhaan alla..

Par es shabdon 'सुफन' ka matlab bhi samjha do..